AHSEC| CLASS 12| HINDI (MIL)| SOLVED PAPER - 2019| H.S. 2ND YEAR

 

AHSEC| CLASS 12| HINDI (MIL)| SOLVED PAPER - 2019| H.S. 2ND YEAR

2019
HINDI
(MIL)
(MODERN INDIAN LANGUAGE)
Full Marks: 100
Pass Marks: 30
Time: Three hours
The figures in the margin indicate full marks for the questions.

 

1. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

पैदा करती कलम विचारों के जलते अंगारे,

और प्रज्वलित-प्राण देश क्या कभी मरेगा मारे?

लहू गर्म करने को रक्खो मन में ज्वलित विचार,

हिंस्र जीव से बचने को चाहिए किन्तु तलवार।

एक भेद है और, जहाँ निर्भय होते नर-नारी,

कलम उगलती आग, जहाँ अक्षर बनते चिनगारी।

जहाँ मनुष्यों के भीतर हरदम जलते हैं शोले।

बातों में बिजली होती, होते दिमाग में गोले।

जहाँ लोग पालते लहू में हलाहल की धार,

क्या चिन्ता यदि वहाँ हाथ में हुई नहीं तलवार?

प्रश्न:

(i) कलम कैसे आग उगलती है? 1

उत्तरः कलम के जरिए व्यक्ति अपने अंदर हो रहे भाव को वक्त कर पाते है। हिंसा पर शब्दों की शक्ति का जोर देने के लिए कलम तलवार से ज्यादा शक्तिशाली है।

(ii) तलवार किसलिए जरूरी है? 1

उत्तरः युद्ध-कौशल में और हिंस्र जीव से बचने के लिए तलवार जरूरी है।

(iii) तलवार न होने की चिंता कहाँ नहीं रहती? 1

उत्तर: तलवार तेज धार वाले होते है यह केवल मार सकते है, जहाँ अपनी बुद्धि से कलम के माध्यम से होने वाले काम में तलवार की जरुरत नही।

(iv) अक्षरों के चिनगारी बनने का क्या आशय है? 1

उत्तरः इसका मतलब है कि लेखन का कार्य हिंसा के कार्य की बजाए लोगों पर अधिक प्रभाव डाल सकता है। शब्दों की बल की तुलना में समस्याओं को हल करने की क्षमता है।

(v) इस पद्यांश का एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए। 1

उत्तरः शीर्षक - कलम और तलवार।

2. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए: 15

भारतीय संविधान निर्माताओं में से एक डॉ. भीमराव आंबेडकर आधुनिक भारतीय चिंतन में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान के अधिकारी है। उन्होंने जीवनभर दलितों की मुक्ति एवं सामाजिक समता के लिए संघर्ष किया। उनका पूरा लेखन इसी सघंर्ष और सरोकार से जुड़ा हुआ है। स्वयं दलित जाति में जन्मे डॉ आंबेडकर को बचपन से ही जाति-आधारित उत्पीड़न-शोषण एवं अपमान से गुजरना पड़ा था। इसलिए विद्यालय के दिनों में जब एक अध्यापक ने उनसे पूछा कि "तुम पढ़-लिखकर क्या बनोगे?" तो बालक भीमराव ने जवाब दिया था-मैं पढ़-लिखकर वकील बनूँगा, अछूतो के लिए नया कानून बनाऊँगा और छुआछूत को खतम करूंगा। डॉ आंबेडकर ने अपना पूरा जीवन इसी सकंल्प के पीछे झोंक दिया। इसके लिये उन्होंने जमकर पड़ाई की। व्यापक अध्ययन एवं चितंन-मनन के बलपर उन्होंने हिन्दुस्थान के स्वाधीनता संग्राम में एक नयी अंतर्वस्तु भरने का काम किया। वह यह था कि दासता का सबसे व्यापक व गहन रूप सामाजिक दासता है और इसके उन्मूलन के बिना कोई भी स्वतन्त्रता कुछ लोगों का विशेषाधिकार रहेगी, इसलिए अधूरी होगी।

प्रश्न:

(i) आधुनिक भारतीय चिंतन में भीमराव आंबेडकर का स्थान महत्वपूर्ण क्यों है?  2

उत्तरः भारतीय संविधान निर्माताओं में से एक डॉ भीमराव आंबेडकर आधुनिक भारतीय चिंतन में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान के अधिकारी है। उन्होंने जीवनभर दलितों की मुक्ति एंव सामाजिक समता के लिए संघर्ष किया।

(ii) डॉ. भीमराव आंबेडकर ने जीवन भर किसकी मुक्ति के लिए संघर्ष किया? 2

उत्तरः डॉ भीमराव आंबेडकर ने जीवन भर दलितों की मुक्ति के लिए संघर्ष किया। उनका पूरा लेखन संघर्ष और सरोकार से जुड़ा हुआ है।

(iii) डॉ. आंबेडकर किस जाति के थे? 1

उत्तरः डॉ आंबेडकर दलित जाति के थे।

(iv) "तुम पढ़-लिखकर क्या बनोगे?" अध्यापक के इस प्रश्न के उत्तर में भीमराव ने क्या कहा? 2

उत्तरः अध्यापक के प्रश्न के उत्तर में भीमराव ने कहा - "मैं पढ़ लिखकर वकील बनूँगा, अछूतो के लिए नया कानून बनाऊँगा और छुआछूत को खतम करूँगा"।

(v) अपनो संकल्प को पूरा करने के लिए भीमराव जी ने क्या किया था? 2

उत्तरः डॉ आंबेदकर ने अपना पूरा जीवन इसी संकल्प के पीछे झोंक दिया। उन्होंने जमकर पढ़ाई की।

(vi) स्वाधीनता संग्राम में नयी अन्तर्वस्तु भरने का काम क्या था? 2

उत्तरः व्यापक अध्ययन एंव चिंतन-मनन के बलपर उन्होंने हिन्दुस्थान के स्वाधीनता संग्राम में एक नयी अंतर्वस्तु भरने का काम किया था। वह यह था कि दासता का सबसे व्यापक व गहन रूप सामाजिक दासता है।

(vi) किसके बिना स्वतन्त्रता अधूरी होगी? 2

उत्तरः दासता का सबसे व्यापक व गहन रूप सामाजिक दासता है और इसके उन्मूलन के बिना स्वतन्त्रता अधूरी होगी।

(vii) अर्थ लिखिए - गुजरना, जमकर, अन्तर्वस्तु और उन्मूलन। 2

उत्तरः गुजरना - गुजर जाना

जमकर - अच्छे से

अन्तर्वस्तु - अंदर की वस्तु

उन्मूलन - जड़ से उखाड़ना

3. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर निबन्ध लिखिए:        10

(क) विज्ञान वरदान या अभिशाप

(भूमिका-विज्ञान के सदुपयोग-दुरूपयोग-चुनौतियाँ- उपसंहार)

उत्तरः विज्ञान के गुण और दोष:

शास्त्रों में वर्तमान युग को कलियुग कहा गया है। इसका शाब्दिक अर्थ जो भी हो, इसे सही मायनों में मशीनों का युग कहा जा सकता है। आज दुनिया में सभी काम मशीनों द्वारा किये जा रहे हैं। एक बटन दबाते ही रात का अँधेरा दिन में बदल जाता है, रुके हुए पहिए चलने लगते हैं, अनगिनत चीजें दिखने लगती हैं। अतः - वर्तमान युग को हम बटन युग भी कह सकते हैं। ये कारखाने, मशीनें आदि सब विज्ञान की देन हैं।

विज्ञान शब्द का अर्थ है विशेष ज्ञान। पिछली दो शताब्दियों में मनुष्य ने अपनी सुविधा के लिए जिन विशेष उपकरणों का आविष्कार किया है वे सभी विज्ञान हैं। आज विज्ञान का कार्य बिजली, परमाणु ऊर्जा आदि का उपयोग करके मशीनें चलाकर विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन और निर्माण करना है। विज्ञान ने मनुष्य की बुद्धि, शक्ति और क्षमता को बढ़ाकर इतना शक्तिशाली बना दिया है कि अब असंभव कार्य भी संभव हो गए हैं।

आज विज्ञान की शक्ति देखकर आश्चर्य होता है। कुछ समय पहले जो चीजें असंभव मानी जाती थीं, वे अब संभव हो गई हैं। परिवहन इतना सुविधाजनक हो गया है कि हम कुछ ही घंटों में दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुँच सकते हैं। रेल, मोटर, स्कूटर, वायुयान, जहाज आदि साधनों के कारण मनुष्य की चलने की गति बहुत बढ़ गयी है। विज्ञान ने वास्तव में दुनिया के लोगों को एक-दूसरे के करीब ला दिया है। समाचार पत्र मशीनों द्वारा मुद्रित किये जाते हैं। इनके माध्यम से हमें दुनिया भर की जानकारी मिलती है। रेडियो और टेलीविजन न केवल सूचनाएं देते हैं बल्कि उन समाचारों को तुरंत सुनते और दिखाते भी हैं। समाचार एवं सूचनाओं के अतिरिक्त मनोरंजन के क्षेत्र में विज्ञान की सहायता भी उल्लेखनीय है। अब पुराने ढंग के महंगे मनोरंजन की जरूरत नहीं है। रेडियो, टेलीविजन और सिनेमा ने कम समय और कम खर्च में मनोरंजन के उत्कृष्ट साधन उपलब्ध कराये हैं। विज्ञान ने ज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में भी योगदान दिया है। अनेक विषयों और अनेक भाषाओं की पुस्तकें अब हर जगह मुद्रित रूप में उपलब्ध हैं।

विज्ञान की सहायता से मनुष्य ने पृथ्वी, आकाश, समुद्र और पाताल के कई छुपे रहस्यों का पता लगा लिया है। मनुष्य चंद्रमा, शुक्र और मंगल तक पहुंचने में सफल हो रहा है। समुद्र से अनेक बहुमूल्य पदार्थ निकाले जा रहे हैं। पहाड़ों की ऊंची चोटियों पर पहुंचना इंसान के लिए एक खेल बन गया है। धरती के गर्भ में छुपे कई अमूल्य खनिजों को निकालकर मानव जाति को लाभ पहुंचाया जा रहा है। चिकित्सा के क्षेत्र में आश्चर्यजनक प्रगति हुई है।

विज्ञान की शक्ति सबसे अधिक औद्योगिक क्षेत्र में दिखाई देती है। वैज्ञानिकों ने भाप, बिजली और परमाणु ऊर्जा से मशीनें चलाकर उत्पादन और विनिर्माण में अभूतपूर्व वृद्धि हासिल की है। प्रत्येक वस्तु का उत्पादन मशीनों द्वारा शीघ्र एवं कम लागत पर किया जा सकता है। इसके अलावा विज्ञान ने कृषि में भी मदद की है। रासायनिक खाद, ट्रैक्टर, बेहतर बीज आदि के निर्माण से किसानों को सुविधा हुई है और उत्पादन में वृद्धि हुई है। सिंचाई के साधनों में भी विकास हुआ है।

विज्ञान बहुत उपयोगी होने के बावजूद इसके कई नुकसान सामने आए हैं। पहली बात तो यह कि विज्ञान ने मनुष्य को आलसी बना दिया है। मनुष्य हर चीज़ में मशीनों का गुलाम बन गया है। मेहनत की आदत ख़त्म हो गयी है. ऊपरी तौर पर लोग एक-दूसरे के करीब आ गए हैं, लेकिन हकीकत में वे दिलों से दूर हो गए हैं। मशीनों की सभ्यता तो विकसित हो गई, लेकिन जीवन की सरलता और पवित्रता समाप्त हो गई। विज्ञान का सबसे बड़ा अभिशाप यह है कि इसने हथियारों के निर्माण में सहायता देकर युद्धों को बढ़ावा दिया है। सम्पूर्ण विश्व में हिंसा का बोलबाला विज्ञान की ही देन है। विज्ञान के कारण बेरोजगारी, महँगाई और भ्रष्टाचार भी बढ़ा है।

हमारा कर्तव्य है कि हम सद्गुणों को अपनाएं और अवगुणों को दूर करने का प्रयास करें। यदि विज्ञान केवल निर्माण, सुविधा और सेवा का ही उद्देश्य पूरा करे तो वह निश्चित ही हमारे लिए बहुत बड़ा वरदान होगा।

(ख) जनसंचार माध्यम:

(भूमिका – प्रकार- सामाजिक जीवन में जनसंचार माध्यम का सुप्रभाव - कुप्रभाव-उपसंहार)

उत्तरः भूमिका: अपने विचारों, भावनाओं व सुचनाओं को सम्प्रेषित करने के लिए मनुष्य को संचार की आवश्यकता पड़ती है। वैज्ञानिक प्रगति नें संसार के अन्य साधन भी उपलब्ध करवाए। अब मनुष्य दुनिया के छोर पर मौजूद व्यक्ति से दुनिया के दूसरे छोर से वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से बात करने में सक्षम है। ये वैज्ञानिक उपकरण ही संचार के साधन कहलाते हैं। टेलीफोन, रडियो, समाचार-पत्र, टेलीविजन इत्यादि संसार के एसे ही साधन हैं, जिसकी सहायता से एक बार में कुछ ही व्यक्तियों से संचार किया जा सकता है।

प्रकारः जनसंचार माध्यमों को कुल तीन वगो -मुद्रण माध्यम, इलेक्ट्रानिक माध्यम एवं नव-इलेकट्रॉनिक माध्यम में विभाजित किया जा सकता है। मुद्रण माध्यम के अन्तर्गत समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, पैम्फलेट, पोस्टर, जर्नल पुस्तकें इत्यादि। इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के अन्तर्गत रेडियो, टेलीविजन एवं फिल्में आती है और इण्डरनेट जनसंसार का नव-इलेक्ट्रॉनिक माध्यम हैं।

(i) समाचार पत्र: मुद्रण माध्यम की शुरुआत गुटनवार्ग द्वारा १४५४ ई. में मुद्रण मशीन के आविष्कार के साथ हुई थी। इसके बाद विश्व के अनेक देशों में समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। समाचार पत्र कई प्रकार के होते हैं - त्रैमासिक, मासिक, साप्ताहिक एवं दैनिक। भारत का पहला समाचार पत्र अंग्रेजी भाषा मैं प्रकाशित 'बंगाल गजट' था। इसका प्रकाशन १७८० ई. में जेमस ऑगस्टस ने शुरु किया था।

(ii) रेडियो: भारत में वर्ष १९२३ में रेडियों के प्रसारण के प्रारम्भिक प्रयास और वर्ष १९२७ में प्रायोगिक तौर पर इसकी शुरुआत के बाद से अब तक इस क्षेत्र में अत्याधिक प्रगति हासिल की जा चुकी है और इसका सर्वोत्तम उदाहरण-एफएम रेडियो प्रसारण है।

(iii) टेलीविजन: आजकल यह जनसंसार का प्रमुख साधन बन चुका है। पहले इस पर प्रसारित धारावाहिकों एवं सिनेमा के कारण यह लोकप्रिय था। बाद में कई न्यूज चैनलों की स्थापना के साथ ही यह जनसंसार का एक ऐसा सशक्त माध्यम बन गया, जिसकी पहुँच करोड़ों लोगों तक हो गई। भारत में इसकी शुरुआत वर्ष १९५९ में हुई थी।

(iv) फिल्म: फिल्मों में समाज एंव देश का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया जाता है। फिल्मों का उद्देश्य केवल मनोरंजन ही नहीं, देशाहित एंव समाज सुधार भी होता है।

(v) कम्प्यूटर एवं इण्टरनेट: इण्टरनेट जनसंसार का एक नवीन इलेक्ट्रॉनिक माध्यम है इसका आविष्कार वर्ष १९६९ में हुआ था। इण्टरनेट ने सरकार, व्यापार और शिक्षा को नए अवसर दिए है। सरकार अपने प्रशासनिक कार्यों के संचालन, विभिन्न कर प्रणाली, प्रबन्धन और सूचनाओं के प्रसारण जैसे अनेकानेक कार्यों के लिए इण्डरनेट का उपयोग करती है।

सामाजिक जीवन में जनसंचार माध्यम के सुप्रभाव: किसी भी देश में जनता का मार्गदर्शन करने के लिए निष्पक्ष एंव निर्भीक जनसंसार माध्यमों का होना आवश्यक है। ये देश की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों की सही तस्वीर प्रस्तुत करते है। जनता की समस्यायों की इन माध्यमों से जन जन तक पहुँचाया जाता है। विभिन्न प्रकार के अपराधों एंव घोटालों का पर्दाफाश कर ये देश एक समाज का भला करता है। ये आधुनिक समाज में लोकतन्त्र के प्रहरी का रूप ले चुके है, इसलिए इन्हें लोकतन्त्र के चतुर्थ स्तम्भ की संज्ञा दी गयी है। इन माध्यमों के जरीए लोग देश-विदेश का हाल-चाल घर बेठे ही पा सकते है, क्रिकेट देख सकते है। ज्ञान-विज्ञान के चीज जान सकते है। संसार माध्यम अभी सभी के लिए लाभकारी सिद्ध हो चुके है। ये संसार को एक डिब्बे में कैद कर लिया है। इससे आने-जाने का समय नष्ट नहीं होता और काम भी जल्दी हो जाता है।

कुप्रभाव: एक और जहाँ ये लाभ पहुँचाता हैं वही यह बेरोजगारी भी बढ़ाता है। कल तक जो काम हम दूसरों का पैसे देंकर करवाते थे वहाँ काम आज हम खुद कर लेते है। इससे हम लोगों की आखों को भी नुकसान पहुँचता है। पैसों के बरबादी के साथ साथ समय की भी बरबादी होती है। उपसंहारः चुनाव एवं अन्य परिस्थितियों में सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों से जनसाधारण को अवगत कराने की जिम्मेदारी भी जनसंसार माध्यमों को ही बहन करनी पड़ती है। ये सरकार एवं जनता बीच एक सेतु का कार्य करते है इसे हम मीडिया भी कहते हैं। आशा दे आने वाले वर्षों में भारतीय मीडिया अपना कर्तव्य पूरी ईमानदारी के साथ निभाते हुए देश के विकास में और सहयोग करेगा।

(ग) स्वच्छता अभियान और भारत

(भूमिका- स्वच्छता और पर्यावरण का संबंध- नागरिकों का कर्तव्य - प्रशासन का दायित्व - उपसंहार)।

उत्तर:- "जो बदलाव आप दुनिया में देखना चाहते हैं, उसे पहले अपने अंदर लागू करें" महात्मा गांधी।

परिचय: देश को स्वच्छता के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करने के लिए सरकार द्वारा स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया गया था। गांधीजी ने स्वच्छ भारत का सपना देखा था और कहा था कि स्वच्छता और स्वच्छता दोनों स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन के आवश्यक अंग हैं। लेकिन दुर्भाग्य से आज़ादी के 67 साल बाद भी भारत इन दोनों लक्ष्यों से बहुत पीछे है। इस मिशन को स्थापना तिथि से लेकर बापू की पुण्य तिथि (2 अक्टूबर 2019) तक पूरा करने का लक्ष्य है।

स्वच्छता और पर्यावरण का संबंध: स्वच्छ भारत अभियान भारत सरकार द्वारा स्थापित एक राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान है, जो 4041 वैधानिक कस्बों में सड़कों, पैदल मार्गों और कई अन्य स्थानों को कवर करता है। यह एक बड़ा आंदोलन है जिसके तहत 2019 तक भारत को पूरी तरह से स्वच्छ बनाना है। यह अभियान भारत के शहरी विकास और पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के तहत ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में लागू किया गया है। हाथ से सफाई करने की प्रथा को जड़ से खत्म करना जरूरी है। भारत के लोगों की अपने स्वास्थ्य के प्रति सोच और व्यवहार में बदलाव लाना और स्वस्थ स्वच्छता प्रथाओं का पालन करना। स्वच्छता से ही हमारा पर्यावरण स्वच्छ रहेगा। कूड़ा फैलाने से पर्यावरण को नुकसान होता है। सरकार कचरे को जैविक खाद और उपयोगी ऊर्जा में बदलने का प्रयास कर रही है। ताकि गंदगी कुछ कम हो सके. लोगों को अपनी जरूरत के अनुसार ही फैक्ट्रियों का उपयोग करना चाहिए क्योंकि इससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है।

नागरिकों का कर्तव्य: स्वच्छता बनाए रखने के लिए नागरिकों को स्वयं जागरूक होना होगा। यह बहुत जरूरी है कि भारत के हर घर में शौचालय हो और खुले में शौच की प्रवृत्ति को खत्म करने की भी जरूरत है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के बीच अस्वच्छ टॉयलेट फ्लशिंग के बारे में वैश्विक जागरूकता पैदा करना और आम लोगों को स्वास्थ्य से जोड़ना महत्वपूर्ण है। पूरे भारत में स्वच्छता सुविधाएं विकसित करने में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाई जानी चाहिए। ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में स्वच्छता एवं पारिस्थितिकी संरक्षण को निरन्तर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। विद्यालय क्षेत्र में सफाई करना, महान लोगों के योगदान पर भाषण, निबंध लेखन प्रतियोगिता, कला, फिल्म, चर्चा, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता पर पेंटिंग एवं नाटक मंचन आदि। इसके अलावा सप्ताह में दो बार स्वच्छता अभियान चलाया जाना चाहिए जिसमें शिक्षक, छात्र और अभिभावक सभी भाग लेंगे।

प्रशासन की जिम्मेदारी: इस अभियान को सफल बनाने के लिए सरकार ने सभी लोगों से अनुरोध किया कि वे अपने आसपास और अन्य स्थानों की सफाई के लिए साल में केवल 100 घंटे दें। इसे लागू करने के लिए कई नीतियां और प्रक्रियाएं हैं जिनके तीन चरण हैं - योजना चरण। कार्यान्वयन चरण और निरंतरता चरण. ग्राम पंचायत, जिला परिषद एवं मंचायत समिति की अच्छी भागीदारी है। इस मिशन का पहला स्वच्छता अभियान (25 सितंबर 2014) पहले ही भारतीय प्रधान मंत्री द्वारा शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य सभी के लिए स्वच्छता सुविधाओं का निर्माण करके पूरे भारत में बेहतर सीवेज प्रबंधन के साथ-साथ स्वच्छता की समस्या को हल करना है।

मार्च 2017 में, योगी आदित्यनाथ ने स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए, सरकारी कार्यालयों में, विशेषकर ड्यूटी घंटों के दौरान, चबाने वाले पान, पान-मसाला, गुटका और अन्य तंबाकू उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया। उन्होंने इस पहल की शुरुआत एक सरकारी भवन की अपनी पहली यात्रा के बाद की जब उन्होंने पान के दाग वाली दीवारें और कोने देखे। शहरी क्षेत्रों में स्वच्छ भारत मिशन का लक्ष्य प्रत्येक शहर में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के साथ-साथ लगभग 1.04 करोड़ घरों में 2.6 लाख सार्वजनिक शौचालय उपलब्ध कराना है। कार्यक्रमों का लक्ष्य जो हासिल करना है उसमें खुले में शौच को खत्म करना, अस्वास्थ्यकर शौचालयों को फ्लश शौचालयों में परिवर्तित करना शामिल है।

4. अपने इलाके की शोचनीय यातायत की व्यवस्था का उल्लेख करते हुए किसी भी एक स्थानीय पत्र के सम्पादक के नाम एक पत्र लिखिए।    5

उत्तरः सेवा में

सम्पादक महोदय

दैनिक जागरण,

केशव नगर, गुवाहाटी

विषय: शोचनीय यातायात हेतु पत्र

महोदय,

मैं यहाँ का निवासी हुँ। पिछले दस सालों से मैं यहा रह रहा हूँ। मैं सम्पादक महोदय का ध्यान यहा की वातावरण व्यवस्था की और आकृष्ट करना चाहता हूँ। यहाँ की यातायात व्यवस्था बड़ी ही खेदजनक है। यहाँ तक बस की व्यवस्था भी नहीं है। जिससे लोगों को बहुत असुविधा का सामना करना पड़ता है। समय पर कॉलज पँहुचने या अन्य किसी काम से शहर आने के लिए काफी असुविधा का सामना करना पड़ता है। सरकारी लोगों को गुहार लगाते लगाते यहाँ के लोग अभी ठक से गए है।

आशा है की आप हमलोगों के इस पत्र को पढ़के अपना कुछ राय छापेगें जो सरकारी लोगों के कानों तक जा पँहुचे। धन्यवाद।

भवदीय

सुमीत

अथवा

अपने शहर के चिकित्सालय के अस्वास्थ्यकर वातावरण के सम्बंध में जिला अधिकारी को सूचित करते हुए एक पत्र लिखिए।

उत्तरः सेवा में,

जिला अधिकारी महोदय गोवालपारा

विषय: चिकित्सालय का वातावरण संदर्भ हेतु पत्र

महोदय,

मैं गोवालपारा असामरिक चिकित्सालय के बारे में बोलना चाहता हूँ। मेरे पिताजी का ओपरेशन हेतु 10 के लिए उन्हें वहा रखना पड़ा। पिताजी के साथ माँ और मुझे भी उनके साथ वहा रहना पड़ा। यहाँ की हालत बहुत ही असहनीय है। टॉयलेट पर गंदगी चाई हुई हैं। पानी का भी उपयुक्त व्यवस्था नहीं है। पीने पानी का अभाव हो रखा हैं। मच्चर के कारण बीमार लोग ठीक से सो भी नहीं पाते उल्टा ज्यादा बीमार में पड़ते है। मरीजों के साथ साथ अभिभावकों को भी तकलीफ झेलनी पड़ती है। अतः आपसे यही निवेदन है की इस समस्या का निदान तत्काल करने की कृपा करेगें। धन्यवाद ।

भवदीय कृष्ण नाथ कृष्णाई

5. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:     1x5=5



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