AHSEC| CLASS 12| HINDI (MIL)| SOLVED PAPER - 2016| H.S. 2ND YEAR
2016
HINDI
(MIL)
(MODERN
INDIAN LANGUAGE)
Full
Marks: 100
Pass
Marks: 30
Time:
Three hours
The
figures in the margin indicate full marks for the questions.
1. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
रात
यों कहने लगा मुझ से गगन का चाँद,
आदमी
क्या अनोखा जीव होता है।
उलझनें
अपनी बनाकर आप ही फंसता,
और
फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।
जानता
है तू, कि मैं कितना पुराना हूँ,
मैं
चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते, और लाखों बार तुझसे पागलों को भी चाँदनी में बैठे
स्वप्नों पर सही करते।
प्रश्न:
(क)
गगन का चाँद कवि से आदमी के सम्बन्ध में क्या कहता है? 1
उत्तर:
आदमी बहुत अनोखा जीव है।
(ख)
गगन का चाँद कवि के बारे में क्या जानता है? 1
उत्तरः
गगन का चाँद कवि किनता पुराना है, यह जानता है।
(ग)
'उलझनें अपनी बनाकर आप ही फंसता' - अर्थ बताइए। 1
उत्तर:
आदमी इस धरती पर अपना नियम-कानून बनाकर उसमें वह खुद ही फँसने के बारे में कहाँ
है।
(घ)
कवि क्या देख चुके है? 1
उत्तरः
कवि मनु को जनमते-मरते देख चुका है।
(ङ)
अर्थ बताइए - अनोखा, मनु| 1
उत्तरः
अनोखा: अद्भूत
मनु:
मनुष्य, आदमी
2. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर उसके नीचे
दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
राष्ट्रीय
एकता के लिए हम धर्म को नहीं, बल्कि इसकी संकीर्ण भावना को बुरा और
त्याज्य समझते हैं। हमारी परिभाषा में कर्तव्य की भावना ही धर्म है। गांधीजी
राष्ट्रीयता में धार्मिक पक्ष को अत्यधित महत्व देते थे। उन्होंने राजनीति के साथ
धर्म को मिला दिया था। उन्होंने कहा है- 'मैं उपने राजनीतिक और अन्य सभी
कार्य-कलापों को धर्म से ही ग्रहण करता हूँ। मैं धार्मिक जीवन तब तक व्यतीत नहीं
कर सकता जब तक कि समाज में अपने लिए एक विशेष स्थान नही बना लेता हूँ और समाज में
अपना एक उच्च स्थान उस स्थिति में बना सकता हूँ जबकि मैं राजनीति में सक्रिय भाग
लूँ। गांधी जी के समान योगी अरविन्द, महामना मालवीय जी, लाला लाजपत राय, लोकमान्य
तिलक और गुरुदेव रवीन्द्र भी ईमानदारी सहित कर्तव्यपरायणता को राष्ट्रोत्रति और राष्ट्रीय
एकता के लिए आवश्यक मानते थे।
प्रश्न:
(क)
राष्ट्रीय एकता के लिए किसके त्याज्य मानना चाहिए? 2
उत्तरः
राष्ट्रीय एकता के लिए धर्म कगी संकीर्ण भावना को बुरा और त्याज्य मानना चाहिए।
(ख)
प्रस्तुत पंक्तियों के अनुसार धर्म क्या है? 2
उत्तरः
राष्ट्रीय एकता और कर्तव्य की भावना ही धर्म है।
(ग)
गांधीजी धर्म को किसके साथ मिला देता था? 1
उत्तर:
गांधीजी धर्म को राजनीति के साथ मिला देता था।
(घ)
गांधीजी के अनुसार वे कब तक धार्मिक जीवन व्यतीत नहीं कर सकते? 3
उत्तर:
गांधीजी के अनुसार वे तब तक धार्मिक जीवन व्यतीत नहीं कर सकता जब तक कि समाज में
अपने लिए एक विशेष स्थान नहीं बना लेता।
(ङ)
राष्ट्रीय एकता के लिए ईमानदारी और कर्तव्यपरायणता की आवश्यकता क्यों है? 3
उत्तर:
राष्ट्रीय एकता के लिए मनुष्य को धार्मिक होने के साथ साथ, समाज में अपना एक उच्च
स्थान प्राप्त करना जरुरी होता है, यानी राष्ट्रीय एकता के लिए ईमानदारी और
कर्तव्यपरायणता होना जरुरी है।
(च)
गांधीजी के विचारों को माननेवाले किन्हीं दो महानुभावों के नाम लिखिए। 2
उत्तरः
गांधीजी के विचारों को माननेवाले दो महानुभाव है, लाला लाजपत राय और रबीन्द्रनाथ जी
।
(छ)
गद्दांश का एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए। 1
उत्तरः
धर्म और राजनीति परस्पर एक दूसरे के परिपूरक है।
(ज)
संधि विच्छेद कीजिए - 1
राष्ट्रोन्नति,
अत्याधिक
उत्तरः
राष्ट्रोन्नति: राष्ट्र + उन्नति
अत्याधिकः
अति + अधिक
3. निम्नलिखित में से किसी एक पर निबन्ध
लिखिए: 10
(क)
राष्ट्रीय एकता
(भूमिका
- महत्व - उपाय - नई पीढ़ी की भूमिका - उपसंहार)
उत्तर:-
राष्ट्रीय एकता
राष्ट्रीय
एकता देश को एक बनाने में गतिशील भूमिका निभाती है। यह समाज के हर वर्ग को एकजुट करने
से ही होता है। यह प्रत्येक नागरिक को समान अवसर प्रदान करता है। यह सामाजिक, सांस्कृतिक
और आर्थिक विकास के मामले में भी एक समान मंच प्रदान करता है ।
राष्ट्रीय
एकता अल्पसंख्यकों को एकजुट करने में भी मदद करती है और साथ ही उन्हें बिना किसी हस्तक्षेप
के अपने तरीके से जीवन जीने की आजादी भी देती है। इस प्रकार देश के विकास के लिए राष्ट्रीय
एकता भी आवश्यक है। क्योंकि राष्ट्रीय एकता वाला देश सदैव फलेगा-फूलेगा और विकसित होगा।
राष्ट्रीय
एकता के उद्देश्य:
राष्ट्रीय
एकीकरण का मुख्य उद्देश्य किसी देश के लोगों के लिए बेहतर वातावरण प्रदान करना है।
इस प्रकार वे सभी पहलुओं में अपना विकास कर सकते हैं। यह भारत जैसे बहु-नस्लीय और बहुभाषी
देश को एकजुट करने में भी सहायता करता है, जहां विविध संस्कृति और परंपरा वाले लोग
रहते हैं। यह समुदायों, समाजों और लोगों के बीच भाईचारे के मेल को भी बढ़ाता है।
राष्ट्रीय
एकता किसी देश की स्थिरता बनाए रखने में भी मदद करती है और इसके संपूर्ण विकास में
योगदान देती है। यह सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने और जातिवाद, क्षेत्रवाद और भाषावाद
आदि से लड़ने का समर्थन करता है। राष्ट्रीय एकता राष्ट्र के प्रति वफादारी और भाईचारे
की भावना में सुधार करती है। यह किसी भी राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति में लोगों को
एकजुट करता है।
राष्ट्रीय
एकता को कैसे बढ़ावा दें?:
चूंकि
राष्ट्रीय एकता किसी देश के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, इसलिए उसके
नागरिकों के बीच राष्ट्रीय अखंडता की भावना विकसित करना महत्वपूर्ण हो जाता है। इसलिए
समाज के सभी वर्गों पर ध्यान केंद्रित करने और उन्हें आर्थिक रूप से निर्भर बनाने से
राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिलेगा।
इससे
आर्थिक अखंडता को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी. यह राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने में
सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक है। अन्य जाति या धर्म के प्रति सहिष्णुता और सम्मान
भी राष्ट्रीय अखंडता को बढ़ावा देने में सहायक होता है। शिक्षा, सामाजिक और सांस्कृतिक
एकता, लोगों के बीच समानता भी राष्ट्रीय एकता की भावना सिखाने में मदद करती है।
राष्ट्रीय
एकता के लाभ:
राष्ट्रीय
एकता किसी देश के राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक आयामों में बहुत महत्वपूर्ण
भूमिका निभाती है। यह निम्नलिखित तरीकों से देश की मदद करता है:
(i)
सामाजिक समरसता को बढ़ावा देता है: राष्ट्रीय एकता किसी
देश के लोगों को सद्भाव में मौजूद रखती है। यह उनके बीच सामाजिक बंधन को मजबूत करके
ही काम करता है। यह उनके बीच भाईचारे, शांति और सहिष्णुता का समर्थन करता है।
(ii)
राष्ट्र को एकजुट करता है: राष्ट्रीय एकता विभिन्न नस्ल,
जाति, पंथ या विचारों के लोगों को एकजुट करने में सहायता करती है और देश को एक इकाई
बनाती है। यह देश को मजबूत करता है और अंतरराष्ट्रीय मंच पर शक्तिशाली बनाता है।
(iii)आर्थिक
विकास को बढ़ाता है: यह सर्वविदित तथ्य है कि देश
में आंतरिक मामले एवं समस्याएँ कम हैं। वे सदैव समृद्ध और विकसित होंगे। जो देश एकजुट
है उस देश में हमेशा उस देश की तुलना में कम समस्याएं होंगी जो सामाजिक रूप से अस्थिर
है।
(iv)
राष्ट्र के प्रति निष्ठा को बढ़ावा देता है: राष्ट्रीय
एकता देश के प्रति नागरिकों की निष्ठा का समर्थन करती है। यह लोगों को अपने छोटे-मोटे
मुद्दों को भूलकर एक साथ आने और देश की उन्नति के लिए खड़े होने में मदद करता है।
आधुनिक
युग में राष्ट्रीय एकता का महत्व:
आधुनिक
समय में राष्ट्रीय एकता अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसलिए इसमें सांप्रदायिकता,
क्षेत्रवाद, भाषावाद आदि जैसी चुनौतियाँ हैं। वैश्विक आतंकवाद भी राष्ट्रीय एकता के
लिए प्रमुख खतरों में से एक है। जबकि कट्टरपंथी विचारों वाले कुछ लोग आबादी को समझाते
हैं और उनका ब्रेनवॉश करते हैं। वे उन्हें उनकी मातृभूमि के विरुद्ध भड़काते हैं।
तकनीकी
प्रगति और सोशल मीडिया की पहुंच के युग में। धोखा खाना बहुत आसान है. राष्ट्रीय एकता
इन स्थितियों को नजरअंदाज करने में मदद करती है। यह लोगों को बौद्धिक रूप से परिपक्व
और सहनशील बनाता है।
निष्कर्ष:
किसी
भी देश के लिए राष्ट्रीय एकता बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि मानव इतिहास में कई बार देखा
गया है कि किसी राष्ट्र की अखंडता खतरे में पड़ गई। इसने भीतर से बड़ी चुनौतियों का
सामना किया और विदेशी हमलों का भी शिकार बना। इसलिए किसी राष्ट्र के निर्माण में राष्ट्रीय
एकता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसने निरंतर विकास के साथ इसे इतिहास में जीवित
रखा है।
(ख)
समाचार पत्र
(भूमिका
- प्रकार- लाभ-हानि कर्तव्य उपसंहार)
उत्तरः
समाचार-पत्र
'खीचों
न तीर, कमान, न तलवार निकालो।
जब
तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो।'
व्यक्ति
और समाज का आपस में घनिष्ठ संबंध है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह समाज में घटित होने
वाली घटनाओं से स्वयं को अवगत रखना चाहता है। समाज परिवर्तनशील इकाई है। समय के साथ-साथ
समाज में भी परिवर्तन होता रहता है। इन सबकी सूचना देने और हमारी खबर लेने का सबसे
सरल और सस्ता माध्यम है- समाचार पत्र। वर्तमान युग में प्रत्येक व्यक्ति समाचार-पत्र
पढ़ता है। प्रातःकाल उठते ही उसकी पहली दृष्टि समाचार- पत्र की ओर जाती है। वह दुनिया
में घटित होने वाली घटनाओं के बारे में जानना चाहता है। आज की दुनिया सिमट कर छोटी
हो गई है। हम पर दूसरों के सुख-दुख का प्रभाव पड़ता है। विश्व में सब से पहले लोग मानव
हैं और बाद में उस देश विशेष के निवासी है।
समाचार-पत्रों
के प्रकाश एवं समाचार एकत्रीकरण की प्रक्रिया अत्यंत जटिल है। प्रमुख संवाद एजेंसियों
एवं बड़े-बड़े समाचार पत्रों के कार्यालय विश्व के प्रमुख नगरों में बने हुए हैं। विश्व
में घटित होनेवाली घटनाओं की सूचना वे तुरंत समाचार-पत्रों तक पहुंचा देते हैं। समाचार-पत्रों
के संपादक अत्यंत तीव्रगति से समाचारों का संपादन करते हैं। और प्रकाशन विभाग मुद्रण
में बहुत तेजी बरतता है। समाचार पत्रों को वितरण का कार्य सुचारू ढंग से संपन्न किया
जाता है।
समाचार-पत्रों
की उपयोगिता असंदिग्ध है। प्रजातंत्र का इसे चौथा स्तंभ माना जाता है। प्रजातंत्र में
प्रजा के अधिकारों का सच्चा रक्षक समाचार पत्र ही होते है। वे ही सरकार तक जनवाणी को
पहुंचाते हैं। सरकारी घोटालों का पर्दाफाश भी समाचार-पत्र ही करते हैं। कई बार सरकार
समाचार-पत्रों की आजादी पर कुठाराघात करने का प्रयासकर चुकी है। पर सशक्त विराध के
सम्मुख उसे सदैव झुकना पड़ा है। जनतंत्र में समाचार-पत्रों की स्वतंत्रता बहुत आवश्यक
है। ये जनता को राजनीतिक दृष्टि से शिक्षित करते हैं।
समाचार-पत्रों
की उपयोगिता कई क्षेत्रों में है। यह ज्ञान-विज्ञान का प्रमुख माध्यम है। इनके संपादकीय
एवं विभिन्न लेख हमें विश्व भर के मामलों की निष्पक्ष जानकारी देते हैं। समाचार-पत्त्र
विश्व की घटनाओं से हमें जोड़ते हैं। समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाले विज्ञापन
हमारे और विज्ञापनदाता दोनों के लिए ही बहुत उपयोगी है। इन विज्ञापनों में नौकरी, विवाह,
उत्पाद सामग्री आदि का विवरण होता है। इन्हीं के माध्यम से व्यापारी अपनी वस्तुओं का प्रचार करते हैं। समाचार-पत्रों में
ज्योतिष, भविष्यफल, पुस्तकों की समीक्षा, सिनेमा-नाटकों की समीक्षा आदि भी प्रकाशित
होती हैं। इससे पाठकों एवं दर्शकों को पर्याप्त मार्गदर्शन प्राप्त हो जाता है। जिन
समाचार-पत्रों की मनोवृत्ति संकीर्ण होती है, वे अत्यंत हानिकारक होते हैं। हमें ऐसे
समाचार-पत्रों को हतोत्साहित करना चाहिए। समाचार- पत्रों को सरकार या पूंजीपति वर्ग
के हाथों का खिलौना नहीं बनाना चाहिए। अब लोगों में साक्षरता बढ़ने से इनका महत्व भी
बढ़ता चला जा रहा है। प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति को कई समाचार पत्न पढ़ने चाहिए। इससे
उसका बौद्धिक विकास तीव्रगति से होता है।
(ग)
विज्ञान - वरदान है या अभिशाप
(प्रस्तावना
- अनिवार्यता - वरदान के रूप में अभिशाप-उपसंहार)
उत्तरः
विज्ञान का अर्थ है किसी विषय का विशेष और व्यवस्थित ज्ञान। विशेष ज्ञान के बल पर
ही विशेष कार्य किये जाते है। तरह-तरह के आविष्कार तथा खोज विज्ञान के ही परिणाम
है। विज्ञान की दी हुई चीजों का उपयोग हम सुबह से लेकर नींद आने तक लगातार करते
रहते है। यहाँ तक कि नींद आने की बाद भी विज्ञान हमें लाभ पहुँचाता रहता है। आज
विज्ञान के बिना मनुष्य का जीवन सभ्य नहीं कहा जा सकता है।
विज्ञान
ने हमारे जीवन को कितना सुखी बना दिया है, यह कहने की आवश्यकता नहीं है। कपड़े
बुनने के कल-कारखाने, अधिक अनाज उगाने के लिए ट्रेक्टर तथा अन्य मशीने, मकान बनाने
के नये-नये उपाय तथा औजार, ये सब विज्ञान ने हमारे लिए बनाये हैं। किसी समय लोग
अकाल से मरने को मजदूर थे किन्तु आज किसी के भूख से मरने की खबर शायद ही कभी मिलती
हो। किसी समय बड़ी संस्था में हैजा, चेचक, प्लेग आदि बीमारियों से लोगो की मौत हो
जाती थी। किन्तु आज ये सब रोग विज्ञान के नियंत्रण में हैं।
इतना
ही नहीं, विज्ञान ने हमारी दैनिक सुख-सुविधा की छोटी-छोटी चीजों के अलावा शिक्षा,
सूचना, सम्पर्क, मनोरजंन, यात्रा तथा शत्रुओं से रक्षा के उनेक उपाय और साधन हमें
दिया है। सुई से लेकर कार, ट्रेन, विमान तथा अंतरिक्ष यान और कृत्तिम उपग्रह तक
विज्ञान के हाथों बन चुके हैं जिनका उपयोग हम प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जरूर
करते है।দর
विज्ञान
से जहाँ मनुष्य के इतने लाभ हुए हैं और जीवन सभ्य तथा सहज बन गया है, वहीं बन्दूक,
बम, मिसाइल, जहरीला गैसे आदि बनाकर मनुष्य को भारी नुकसान पहुँचाया है और भविष्य
के प्रति भयभीत कर दिया है। आज पूरा संसार एटम बम के भय से काँप रहा है। प्रदूषण
भी बढ़ा है और वायुमण्डल के ओजोनमंडल की भी नुकसान हुआ है।
अतः
विज्ञान एक तरफ मनुष्य के लिए वरदान है तो दूसरी और अभिशाप भी है। यह हम पर निर्भर
करता है कि हम विज्ञान का प्रयोग कैसे करें।
(घ)
बेरोजगारी
(प्रस्तावना
- कारण - हानियाँ - समाधान के उपाय - उपसंहार)
उत्तरः
जिन ज्वलंत समस्याओं के कारण भारतवर्ष का
चेहरा अभी तक उदास है, उनमें से एक बहुत बड़ा समस्या है, बेकारी। बेकारी का अर्थ
है-किसी व्यक्ति को उसकी योग्य के अनुसार आजोविका न मिलना। भारतवर्ष में यह
बेरोज़गारी विविध रूपों में प्रकट है। पहले वर्ग में वे बेरोज़गार आते हैं, जो
पढ़-लिखकर रोजी-रोटी की तालाश में भटक रहे हैं, किंतु उन्हें न नौकरी मिलती हैं, न
कोई स्वतंत्र धंधा। दूसरे प्रकार के बेरोज़गारी वे हैं, जो अनपढ़ और अप्रशिक्षित
है। वे भी काम के अभाव में बेकार हैं। तीसरे प्रकार के बेरोज़गार काम पर तो लगे
है, लेकिन वे अपनी योग्यता से बहुत कम धन कमा पाते है।
बेकारी
बढ़ने का सबसे पहला कारण है- औद्योगिकीकरण। बड़े-बड़े उद्दोगों के चलने से पहले
भारतवर्ष में निजी उद्दोग धंधे प्रचलित थे। परंतु बड़े-बड़े उद्दोगों ने उन लघु
औद्योगिक इकाइयों को नष्ट कर दिया, परिणामस्वरूप जो लाखो लोग बुनाई कताई, कृषि,
सुनार, लोहार आदि में लगे थे वे बेकार हो गए। मशीनों ने देश को कपड़ा तो दिया
परंतु आजीविका छीन ली।
बेरोज़गारी
का दूसरा बड़ा कारण है- जनसंस्था-वृद्धि। आजादी के पश्चात करोड़ों लोगों को नए
रोज़गार मिले हैं, लेकिन बढ़ती हुई जनसंस्था की गति ने सब योजनाओं को चौपट करके रख
दिया। तीसरा बड़ा कारण हैं गलत औद्यौगिक नीति। आज़ाद भारत के प्रथम नियोजकों ने
लघु उद्योंगों को पनपने नहीं दिया। चौथा कारण है दिशाहीन शिक्षा। शिक्षा की रोजगार
से न जोड़ पाने के कारण पढ़े-लिखे नौजावनों के हाथों बेरोज़गारी ही लगती है।
बेरोज़गारी
और अशांति का चोली-दामन का साथ है। खाली दिमाग शैतान का घर है। बेकार नवयुवक देश
में लड़ाई-झगड़े, आन्दोलन, लूट-पाट, उपद्रव आदि करने पर उतारू हो जाते है। परिणाम
स्वरूप समूचा देश अशांत हो जाता है। बेकारो को समस्या को दूर करने का सरल सा उपाय
किसी के पास नहीं है। इसकी जड़े बहुत गहरी हैं। कुछ उपाय निम्नलिखित है
पढ़े-लिखे
नवयुवकों में श्रम के प्रति गौरव जगाने से सरकार नौकरियों के पीछे भागने की दौड़
कम हो सकती है। यदि नवयुवक हाथ के काम द्वारा निजी व्यवसायों और उद्दोगों में रूचि
ले तो इस समस्या का काफी समाधान हो सकता है। इसके लिए शिक्षा को रोज़गार से जोड़ना
जरुरी है। सबसे प्रभावी कार्यक्रम है - जनसंख्या पर नियंन्त्रण। इसके बिना सब उपाय
धरे- के-धरे रह जाएँगे।
यह
विशाल कार्य केवल सरकार के किए से नही हो सकता। इसके लिए जनता का सहयोग परम आवश्यक
है। जिस दिन जनसहयोग से बेरोज़गारी की समस्या का समाधान होगा, वह दिन भारत की
समृद्धि के लिए सबसे सौभाग्यशाली दिन होगा।
4. दहेज प्रथा की बुराई का उल्लेख करते
हुए एक समाचार पत्र के सम्पादक को पत्र लिखिए। 5
उत्तरः सेवा में
मुखत
सम्पादक
दैनिक
जागरण
लखनऊ
महोदय,
मैं
आजकल होने वाली दहेज प्रथा की बुराई के समाचार पढ़ता हूँ और सम्बन्धित लेख पढ़ता
हूँ तौ बहुत चिंता होता है। न जाने आनेवाले समय में दहेज प्रथा से पीड़ित कन्याओं
का क्या होगा। उनके मान-सम्मान की रक्षा कैसे होगी, विवाह कैसे निभेगे। समाज को यह
स्थिति बहुत चिंताजनक है। मैं समझता हूँ कि यह एक सामाजिक समस्या है। ऐसे मामलो
में पुलिस की कठोरता बहुत अधिक परिणामकारी नहीं होती। एसी दशा में समाज के वातावरण
को बदलने की आवश्यकता है। हमारे साहित्यकारों, समाजसेवियों संन्यासियों, बुद्धिजीवियों
को चाहिए कि वे लड़की के पक्ष में वातावरण बनाएँ और दहेज प्रथा से पीड़ित कन्याओं
बचाए।
आशा
है, आप मेरे इन विचारों की छापने की कृपा करेंगे।
धन्यवाद
भवदीय
सुमीत
अथवा
जन्मदिन
की शुभकामना देकर मित्र के नाम पर एक पत्र लिखिए।
उत्तरः
प्रिय मित्र 'अनिल'
सप्रेम
नमस्ते,
तुम्हारा
पत्र मिला। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि इस बार तुम्हारे जन्मदिन पर तुम्हारे
विद्यालय की भी छुट्टियाँ रहेंगी। यह अच्छी बात होगी क्योंकि इस बार दूर-दराज के
इलाकों में रहने वाले तुम्हारे सहपाठी भी तुम्हारे जन्मदिन पर आ सकेंगे और जन्मदिन
पहले से अधिक धूमधाम से मनेगा। मेरी शुभकामना है कि नित नई सफलता तुम्हारे कदमों
को चूमें और तुम भविष्य में हजारों बात अपना जन्मदिन मनाओं। माता-पिता को मेरा
प्रणाम कहना।
तुम्हारा
मित्र,
'सुरेश'
5. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
1×5=5
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